सुख का बिल

राजा हंसता, खिलखिलाता तो प्रजा दुखी हो जाती| वो अच्छा पहनता-खाता तो दुखी ! कोई योजना बनाता, वादे करता, सपने दिखता, अतीत में जाता, भविष्य बताता, पर सब दुखी| जब दुख का पानी सिर से ऊपर जाने लगा तो राजा ने आधी रात से सुखकल लगाने की घोषणा कर दी |

कृपया निम्न बिंदुओ पर ध्यान दे :

●किसी नागरिक को अब दुखी होने या रहने की इजाज़त नही थी| दुख को उनके मौलिक अधिकार से हटा लिया गया था |

●जो बाकायदा यानी आपदा या दुर्घटना से दुखी होंगे, उन्हें राज्य की और से मुआवजा मिलेगा, लेकिन इसके बाद भी यदि वे दुखी हुए तो सजा का प्रावधान है |

●बेवजह या आदतन दुखियारों को टैक्स देना होगा | जो लोग इश्क़ में दुखी होंगे उन्हें न्याय करने वाली भीड़ को सौंपा जाएगा|

●परिजन आदि की मौत पर उनके निकटतम लोगो को सिर्फ तीन दिन तक दुखी रहने की इज़ाज़त होगी|

•बिना वजह रोने की इजाज़त सिर्फ एक साल तक के बच्चे को होगी |

●जो लोग दुख के बल पर ही ज़िंदा रहेते है, उन्हें दुखी होने का परमिट लेना होगा |

●जो गरीब गरीबी का बहाना बनाकर दुखी होते है, उनके बीपीएल कार्ड निरस्त किये जायेंगे |

●स्त्रियों के दुखी रहने को राज्य आपत्तिजनक नही मानता, राज्य यह भी मानता है कि जहाँ स्त्रियां सुखी दिखाई देती हैं, वहां स्वर्ग होता है |

●राज्य को पता है कि लोगो ने नगरों में दुख-जोन विकसित कर लिए है, जिन्हें कॉफी हाउस कहा जाता है | अतः इन्हें बंद किया जाएगा|

●कवि, लेखक, चिंतक वगैरह यहां जबरन दुखी होते रहते है, और जो दुखान्त कविता या कहानी लिखेंगे,  पुलिस द्वारा उनपर मुकदमा कायम किया जाएगा |

●सभी लोग राज्य की निगरानी में होंगे और जरूरत समझे जाने पर सख्ती से सुखी किये जाएंगे |

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