फीफा और हम

फुटबॉल विश्व कप 'फीफा' में खलीफा भिड़ रहे थे | हम वहां नही थे, देखने-दिखाने को लेकर सरोकार और स्वास्थ्य को लेकर कोई संकट नही था | पर हमारी टीम वहां होती तो यकीनन कुछ और बात होती | तब 90 मिनट की खेल की अवधि में न्यूनतम 180 बार दिल मे रक्तप्रवाह खतरे के निशान से ऊपर बहता |
हम किसी विपक्षी टीम द्वारा जमकर पिदाये जाते तो सरकार के निकम्मेपन पर जमकर सवाल उठाते | खिलाड़ियों के धर्म और जाति की बात करते | फुटबॉल की क्वालिटी और उसे हैक किये जाने की आशंका पर घंटो चर्चा करते |
वैसे आईपीएल ने खेलखुद के मामले में हमारी सोच को वैश्विक बना दिया है, लेकिन दिल है कि देसीपन के आधार पर बार-बार मचलता है | काश, मेसी जैसा एकाध महेश या रोनाल्डो जैसा कोई रमेश हमारे पास होता ! खेर, कोई खेल बहादुर हो न हो, हमारे पास बयान-बहादुरों की कमी नहीं | एकाध टीम को तो हम निंदात्मक टिप्पणियों के गोल से ही हरा देते |

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